हर कोई रावण है। हर कोई राम।
मन की अधीरता को समझो।
मन की निश्चलता को जानो।
हर कोई रावण है। हर कोई राम।
मन की विफलता है रावण।
मन की साधना है राम।
कैसी उलझन है भैया
ना कोई समझें रावण को, ना समझे राम।
रावण को समिधा देके, क्या मिल पायेंगे श्रीराम?
रावण को समझोगे, तो समझोगे राम
हर कोई रावण है। हर कोई राम।
अंजली सुमेध गाडगीळ
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