जय आदियोगी जय महादेवा | विश्वेश्वरा हरे हरे ||
जय महातेजा जय महाकाला | सुखसागरा हरे हरे ||
जय नीलकंठा जय त्रिलोचना | नागेश्वरा हरे हरे ||
जय महायोगी जय विश्वनाथा | डमरूधरा हरे हरे ||
जय पशुपती जय परमज्योती | प्रेमसुधाकरा हरे हरे ||
जय भोलेनाथा जय वैद्यनाथा | नटेश्वरा हरे हरे ||
जय अशुतोषा जय जय महेशा | जय केदारा हरे हरे ||
जय गुणातीता सद्गुरूनाथा | मज पामरा हरे हरे ||
सर्व ओळीमध्ये हरे हरे हा उद्घोष आहे आणि शेवटच्या ओळीमध्ये हरे हरे म्हणजे हरणे-रक्षण करणे आहे.
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चित्र आणि कविता
मंजिरी विवेक सबनीस
मंजिरी विवेक सबनीस
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